Sunday, January 3, 2021

दिखा रहे अब सनक तुम्हारी

उम्मीद से ही तुझे बिठाया, 
किया प्रभावित चमक तुम्हारी।
हैं दंग हम सब कि रंग बदला, 
दिखा रहे अब सनक तुम्हारी।

          वो कसमें वादे थे झूठे सारे, 
          कई दफा जो हुआ है साबित।
          वही झूठ पर नया तरीका, 
          है जारी अबतक ठसक तुम्हारी।

भला ये सोचो है वक्त किसका?
तेरा भी बदलेगा मेरे साहिब।
असर उसी का कि धीरे धीरे, 
हुई है धीमी दमक तुम्हारी।

          तुम्हारी जिद से कृषक सड़क पे,
          मरे हैं मजदूर भुखमरी से।
          बताओ ताकत के दम पे कबतक?
          दिखाओगे तुम धमक तुम्हारी।

है काम जिसका अलख जगाना,
उसे दबा क्या सकोगे प्यारे?
रहेगी कोशिश सुमन की हरदम,
हो फीकी हर दिन महक तुम्हारी।

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