जब घिरो सभी मजबूरी में।
तू घूमत मस्त फकीरी में।।
ऊँचो नृप इतनो भयो, नित परजा से दूर?
काहे को फरियाद फिर, जब खट्टो अंगूर।।
बगिया तब माली बनो, बड़ो हमेशा बाग।
माली फिर कैसे बचो, लगो बाग जब आग।।
क्यों भटकावत कस्तूरी में?
तू घूमत मस्त फकीरी में।।
रोजी - रोटी सब गयो, लाखों भूखो सोय।
राम - भरोसो लोग सब, जो होनी सो होय।।
दवा नहीं, दारू अधिक, तन में रोग समाय।
छोड़ छाड़ नृप काम सब, केवल पाठ पढ़ाय।।
जन कैसे जियें सबूरी में?
तू घूमत मस्त फकीरी में।।
गंगा माता है अपन, खोजत पूत विशेष।
सहन गन्दगी अब नहीं, जगह कहाँ है शेष।।
भूपति निष्ठुर क्यों बनो, क्या परजा अपराध?
पूछत सुमन सवाल तो, बूझो प्रेम अगाध।।
जन-जीवन चले मजूरी में।
तू घूमत मस्त फकीरी में।।
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