लगाने को यूँ तो निशाने बहुत हैं
कहीं चूक जाए तो बहाने बहुत हैं
हथेली से सूरज को भला ढँक रहे क्यूँ?
करम तुझको अपने छुपाने बहुत हैं
तेरे लब पे इक दिन मेरे गीत होंगे
मुहब्बत के दुनिया में तराने बहुत हैं
नफरत को नफरत से किसने मिटाया?
जमाने में किस्से पुराने बहुत हैं
मेले में जितने भी सभी क्या हैं अपने?
भरम तुझको तेरे दिवाने बहुत हैं
दुनिया में आना है जाना भी लेकिन
चलन नेक हमको बचाने बहुत हैं
लुटाना सभी पर तू मुहब्बत की खुशबू
सुमन बन के जीने के माने बहुत हैं
No comments:
Post a Comment