जलन घृणा में सिर्फ अगन है
प्यार जोड़कर करे सृजन है
कोई भी निर्माण तभी जब
प्रेम साथ में अगर अमन है
बँटती नफरत साँझ सकारे
क्या पाने को करे जतन है
नफ़रत की दीवार देखकर
होती दिल में तेज चुभन है
हक सबका है यहाँ बराबर
हम सबका तो एक चमन है
बढ़े घृणा से दिल की दूरी
प्रेम, भाव को करे सघन है
नफ़रत के सौदागर चेतो
अभी सुमन में शेष तपन है
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