Wednesday, August 18, 2021

जिसने छापा, उस पर छापा

जिसने छापा, उस पर छापा
लोकतंत्र का विकट तमाशा

सच्चाई   में   ताप   बहुत  है
उसे    दबाना,  एक  हताशा

दबा  रहे   क्यों  सच  डंडे से 
यह  सत्ता  की व्यर्थ पिपासा

धार  कुंद  जब  तलवारों की 
कलम जगाती जन-जिज्ञासा

जगती जब जब लोक चेतना 
शासक  में  तब  घोर निराशा

आमजनों  के  मूल  प्रश्न  पर
क्यों  दे  झूठी  रोज  दिलासा

आमलोग  लड़  के  हक लेंगे 
टूटी  नहीं  सुमन  की  आशा

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