Friday, April 1, 2022

मगर सो रहे हैं लोग

मनमानी  चल  रही है, भला रोकता है कौन
गाली गलौज खुल के, अभी टोकता है कौन
आपस  की  मुहब्बत  में, नफरत भी घोलते
बेहतर  समाज  और हो, ये सोचता है कौन?

चाहत  नहीं  किसी  की,  शैतान  हम  बनें
मुश्किल  से कोई सोचते, भगवान हम बनें
जैसा  जो  करे  आचरण, बनते हैं हम वही
कोशिश  करो  कि  पहले, इन्सान हम बनें

सुनते  हैं  लोग  कितने, अभी बोलते सभी
कितना  है लाभ - हानि, यही तौलते सभी
है  बैर  या  कि  दोस्ती, आपस  में इसी से
जीवन  के  राज मान लो, यूँ खोलते सभी

खाते  सभी  हैं  अपने मगर, रो रहे हैं लोग
अपनी ही जिन्दगी को यहाँ, ढो रहे हैं लोग
कल आएगी जो पीढ़ी, कुछ फिक्र तो करो
आँखें  खुलीं  हुईं  हैं  मगर, सो  रहे हैं लोग

दुनिया से  विदाई हो सुमन, नाम छोड़कर
अवसर  पे  नहीं भागना तू, काम छोड़कर
मर - मर के रात दिन जो, सुविधा जुटा रहे 
आराम  की  तलाश  में,  आराम  छोड़कर

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