मुस्कानों में दर्द दिखे जो, बिन मौसम के ओले हैं
आह कहीं बर्फीली है तो, कहीं दहकते शोले हैं
छूट रहे अपने सब सपने, जब वे सपने दिखलाते
यूँ बिखरे सपने कि लगता, सबके खाली झोले हैं
बार - बार आँसू मंचों पर, कौन भूल जो छिपा रहे
पर सच ये है उन आँसू ने, राज तुम्हारे खोले हैं
योगी बने फकीर कभी तुम, अभियंता या वैज्ञानिक
लोग समझने लगे हैं सचमुच, सारे नकली चोले हैं
वहाँ बेबसी भी कम लगती, जहाँ आपसी मिल्लत हो
उस मिल्लत में नित नफरत के, जहर आप ही घोले हैं
देखा नायक कई देश के, उनको समझा, महसूसा
नहीं मिला अबतक वो नायक, जो इतने बड़बोले हैं
बैर नहीं है सुमन किसी से, लेकिन दिल में भारत है
कद्र कलम की नहीं करे जो, वो सिंहासन डोले हैं
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