मगर घाव अन्दर होगा
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जनहित का जो होता कामी,
वो सच का होता अनुगामी,
बहुतेरे के पाँव तले बस, सदा झूठ की जमीं रही है।
लोक - लुभावन तेरे वादे, जिसमें केवल कमी रही है।।
देव सभी पूजित मानव से, सभी धरम भी मानव से।
यूँ मानव में नफरत बोया, काम करे वो दानव से।
मानव - धर्म बचाने खातिर,आँखों में क्या नमी रही है?
लोक-लुभावन तेरे -----
इक तबके का मान बढ़ाकर, नहीं देश सुन्दर होगा।
चमक दमक कुछ दिन की होगी, मगर घाव अन्दर होगा।
कई बार आँसू दिखलाते, ये कोशिश मौसमी रही है।
लोक-लुभावन तेरे -----
देश चलाना मिल जुलकर के, काम एक दुस्साहस का।
निन्दक को नजदीक में रखना, काम सुमन है साहस का।
गति विकास की देख जरा तू, क्यूँ अबतक ये थमीं रही है?
लोक-लुभावन तेरे -----
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