छवि आयी घर सुमन के, बीत गया इक साल।
सुमन-सदन रौशन हुआ, कटा समय खुशहाल।।
छवि प्यारी सबकी बनी, रहती नहीं उदास।
यूँ प्यारी सबके लिए, दादू खातिर खास।।
छवि की दुनिया खास है, जिसमें सिर्फ निदान।
उसमें सबको दिख रहे, बाल-रूप भगवान।।
छवि बाबा कहती जहाँ, मन जाता है झूम।
हृदय लगाकर तब उसे, माथा लेता चूम।।
छवि कवितामय गीत भी, और एक उपहार।
सुजन, स्वजन, सबका मिले, उसे हमेशा प्यार।।
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