मुस्कानों की आज़ादी पर, दिल तो अन्दर रोता है
प्यासी धरती तब मुस्काती, जब जब अम्बर रोता है
सिर्फ पढ़ाना छोड़ सभी कुछ, बेवश हो शिक्षक करते
चेहरे पर मुस्कान भले हो, आँख समन्दर रोता है
जनगणना से पशु-गणना तक, सारे काम करे शिक्षक
बच्चों का खाना बनवाना, न्यारे काम करे शिक्षक
भेजे जाते वो चुनाव में, और भवन भी बनवाते
सचमुच छोड़ पढ़ाई कितने, प्यारे काम करे शिक्षक
गुरुकुल कब के बन्द हुए फिर, शिक्षा ही व्यापार बना
ऊँची, उत्तम शिक्षा खातिर, पैसा ही आधार बना
प्रतिभा तो निर्धन के घर भी, वो शिक्षा पायें कैसे
इस पर तुरत विचार करें या, इक मूरख संसार बना
बच्चों की अच्छी शिक्षा जब, शासन को मंजूर नहीं
शिक्षक अब बेहाल देश में, बुरे वक्त फिर दूर नहीं
नौनिहाल शिक्षा से वंचित, फिर भविष्य कैसा होगा
चलो सुमन आवाज उठाते, आमलोग मजबूर नहीं
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