सीख जीना साथ सबके कोई मनमानी न हो
नाव को पानी पे रखना नाव में पानी न हो
सारी नदियाँ तुझसे मिलतीं तू रहा नमकीन पर
ऐ समन्दर! फिर दुबारा ऐसी नादानी न हो
देश में मजहब हजारों मिल के जीते हैं मगर
एक की खातिर कभी दूजे की कुर्बानी न हो
चौकीदारी अबतलक की देख ले महसूस ले
इस तरह से चुन उसे कि भूल बचकानी न हो
आपसी हो प्यार सब में है यही मक़सद सुमन
सिर्फ जुमलों के सहारे चाल मस्तानी न हो
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