Sunday, April 3, 2022

भूल बचकानी न हो

सीख जीना साथ सबके कोई मनमानी न हो 
नाव को पानी पे रखना नाव में पानी न हो

सारी नदियाँ तुझसे मिलतीं तू रहा नमकीन पर
ऐ समन्दर! फिर दुबारा ऐसी नादानी न हो

देश में मजहब हजारों मिल के जीते हैं मगर 
एक की खातिर कभी दूजे की कुर्बानी न हो

चौकीदारी अबतलक की देख ले महसूस ले
इस तरह से चुन उसे कि भूल बचकानी न हो

आपसी हो प्यार सब में है यही मक़सद सुमन 
सिर्फ जुमलों के सहारे चाल मस्तानी न हो

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