मिलकर जीने की चाहत है, सबके साथ सुकून से
अब शासन भी चलता अक्सर, जंगल के कानून से
भूख, बेबसी आम जनों में, भेद भाव भी गहरे हैं
ऐसे ज़ख्मों को अब शासक, खुरच रहे नाखून से
सपन दिखाए जाते अक्सर, रोज सियासी खेलों में
बेबस को फुर्सत कब मिलती, नून, तेल, परचून से
एक से एक हुए हैं शासक, इतिहासों में दर्ज सभी
हाथ रंगे कितनों ने अब तक, इन्सानों के खून से
जहाँ चुनावी मौसम आता, गरमी आती जाड़े में
वैचारिक कम्बल में लिपटे, सुमन मई या जून से
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