जीने खातिर अपना, इक ढंग जरूरी है
पर दिल से अपनों का बस संग जरूरी है
लोहा या सोच-समझ, अटके तो जंग लगे
हर जंग हटाने को, नित जंग जरूरी है
संघर्षों में तपकर कोई बनता है सोना
आराम छोड़ होना, कुछ तंग जरूरी है
घर तब ही घर बनता जो मोल सभी का हो
जैसे मानव तन में, हर अंग जरूरी है
तू संभल सुमन सुख में, दुख तुझे संभालेगा
इस जीवन में भरना, सब रंग जरूरी है
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