Sunday, April 3, 2022

मिलन, प्रेम की पूर्णता

दिल टूटा, आँसू बहे, संचित है वह नीर।
पटक रहा सर इसलिए, सागर आकर तीर।।

दर्द स्वयं का बाँटने, गया समन्दर पास।
शोर, चीख, हलचल सदा, दर्द यहाँ भी खास।।

त्याग मूल है प्रेम का, नहीं प्रेम है भीख।
सागर में खुद को मिटा, नदी दे रही सीख।।

आतुर प्रेमी, प्रेयसी, हृदय मिलन की प्यास।
खारा जल मीठा बने, नदियों को विश्वास।।

बिना प्रेम संसार में, किसे मिला है चैन।
मिलन, प्रेम की पूर्णता, सुमन बरसते नैन।।

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