Saturday, April 2, 2022

हाल भले विपरीत रहे हैं

मिलजुल रहते सभी गाँव में, हाल भले विपरीत रहे हैं।
कुछ बातों को अगर छोड़ दें, सब आपस में मीत रहे हैं

जीवन यापन एक गाँव में, इक जैसे होते अक्सर 
हर अभाव से लड़ने खातिर, एक सभी के गीत रहे हैं

वाक् युद्ध का चलन गाँव में, हर चुनाव में सालों से
मत पेटी खुलने से पहले, हर प्रत्याशी जीत रहे हैं

पहले गाँव शहर में आया, अभी शहर है गाँवों में
लेकिन अपनापन गाँवों के, सदियों से नवनीत रहे हैं

है संघर्ष अधिक गाँवों में, टकराते सब रोज सुमन
साँझ सकारे प्रतकाली सँग, मंदिर में संगीत रहे हैं।

नोट - नवनीत = मक्खन


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