रावण एक प्रतीक है, अहंकार का मीत।
भीतर का रावण मरे, पुतला दहन पुणीत।।
रावण के पुतले बने, यहाँ साल दर साल।
वैसे ही रावण बढ़े, हाल अभी विकराल।।
जलते पुतले देखकर, रावण हँसता यार।
मैं मँहगाई रूप में, नित्य देख विस्तार।।
रोज रोज सीता हरण, देख रहा है देश।
केवल पुतला दहन से, क्या बदले परिवेश??
अब रावण हर गाँव में, क्या पुतले से काम?
सोच कभी कैसे मिले, इतने सारे राम??
रावण का पुतला बने, पैसे माँगे लोग।
खूब वसूली हो रही, फैल रहा यह रोग।।
सबके जीवन में सदा, जीने खातिर युद्ध।
छोड़ो पुतले को सुमन, बनो स्वयं तू बुद्ध।।
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