हर चुनाव खर्चीला इतना, लगता यहाँ अभाव नहीं है
बता कौन मौसम भारत में, जिसमें एक चुनाव नहीं है
दिल से दिल की बढ़ी है दूरी, आपस में विश्वास घटा
ओढ़ रहे यूँ मुस्कानों को, लगता अभी दुराव नहीं है
जीवन है संघर्ष सभी का, उलझन में हैं घिरे सभी
कौन समस्या ऐसी जिस पे, मिलता यार सुझाव नहीं है
जो भी स्वतंत्र निकाय देश के, आज वही है संकट में
क्या कहने में सक्षम कोई, हम पे अभी दबाव नहीं है
सामाजिक परिवेश नेक हों, लोक जागरण के दम पे
सुमन सियासत में जाने की, दिल में कोई चाव नहीं है
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