दीवारें गिरतीं वहाँ, पड़़ती जहाँ दरार।
रिश्ते पड़ी दरार तो, खड़ी हुई दीवार।।
बाहर से परिवार में, दिखे आपसी मेल।
भीतर, भीतरघात के, जारी रहते खेल।।
अहंकार की पालकी, नीचे उतरे कौन?
भौंचक मुखिया देख के, रहते अक्सर मौन।।
अपने - अपने काम का, करते सभी बखान।
खुद से खुद साबित करे, घर में वही महान।।
रोटी, पानी, वस्त्र संग, सुख-सुविधा भरपूर।
फिर भी घर-घर में कलह, सब काहे मगरूर।।
ईंट स्नेह की जब जुड़े, तब सजता घर-द्वार।
बढ़ते रिश्ते प्यार से, तब सुखमय परिवार।।
एक साथ रह के सुमन, पाले दिल में शूल।
वे परिजन घर तोड़ते, ये गुनाह या भूल??
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