घोड़ा भी गदहा बना, कोयल बोली काँव।
गाँव शहर में जा बसा, कहाँ गाँव में ठाँव??
बुरा कौन अच्छा यहाँ, तय करता संसार।
हम देखें दो नैन से, देखे हमें हजार।।
वो कहते ये झूठ है, ये कहते वो झूठ।
इसी झूठ के व्यूह में, हुए आम जन ठूंठ।।
मौसम जहाँ चुनाव का, मिला रहे सब हाथ।
मन ही मन शक भी करे, ये क्या सचमुच साथ??
किसे, कौन, कब पूछता, भोगे लोग अभाव।
आया जहाँ चुनाव तो, जगते सेवा-भाव।।
मुखिया मुख सों चाहिए, करिए मत संदेह।
जैसा अपन शरीर है, लोकतंत्र भी देह।।
देह स्वयं कहती सुमन, बोल उमर की साँच।
समय समय पर है शुरू, अब शारीरिक जाँच।।
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