Sunday, April 3, 2022

यारों! खड़ा कहाँ अब देश?

जहाँ पे चोरी करे सिपाही, मुजरिम देता अगर गवाही।
समाचार  शासक-गुण गाए, वहीं पे आती तानाशाही।
यारों! कहाँ खड़ा अब देश?
बनाओ नूतन सा परिवेश।।

अगर सोच विपरीत किसी की, क्या दुश्मन बन जाते?
अभी सियासी लोगों में ही, क्यूँ अक्सर ही ठन जाते?
पक्ष  -  विपक्षी  ने  आपस  में,  पहले  खूब  निबाही।
यारों! कहाँ खड़ा अब देश -----

आज   सियासी  पेशा  में  जो,  पैसा  ख़ूब  बनाया।
लेकिन  हम  सबको  आपस में, कैसे  रोज लड़ाया?
जिस  कारण नैतिक - मूल्यों की, होती रही तबाही।
यारों! कहाँ खड़ा अब देश -----

जीवन  जीने   खातिर  रोटी,  पहला  धर्म   हमारा।
आपस  में मिल्लत  से रहना, मौलिक  कर्म हमारा।
लोक - जागरण  सुमन  करेगा, होगी नहीं कोताही।
यारों! कहाँ खड़ा अब देश -----

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