Sunday, May 8, 2022

पीरितिया! देत दरद घनघोर

पीरितिया! देत दरद घनघोर।
प्रीत जगावत आस मिलन की, हृदय उठत हिलकोर।।
पीरितिया! देत -----

चाह मिलन की, पंख पसारे, वन में नाचत मोर।
पिया निहारत जुग बीतल, कब, मिलिहें चाँद, चकोर।।
पीरितिया! देत -----

खुशी मिलन है, विरह में पीड़ा, आँसू दोनों ओर।
पूर्व मिलन के, बाद विरह के, मौन मचावत शोर।।
पीरितिया! देत -----

मूल जगत का ढाई आखर, प्रेमहिं करें इंजोर।
जस तस मन की बात सुनावत, नहीं सुमन चितचोर।।
पीरितिया! देत -----

1 comment:

Sweta sinha said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर

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