Sunday, August 21, 2022

रूठा क्यों बादल अभी?

सावन, भादौ मास दो, मूल सृजन का द्वार।
सबके भोजन के लिए, बारिश ही आधार।।

तपती धरती को सदा, है नभ से ही आस।
बादल जब रोता नहीं, धरती तभी उदास।।

रूठा क्यों बादल अभी, अब के अपने गाँव?
खेत छोड़कर कृषक के, ठिठके घर में पाँव।।

बाढ़ पहाड़ी पर अभी, सूखा समतल देख।
ये विकास का खेल या, बस किस्मत की लेख।।

जो हालत है सामने, हम सब दोषी भाय।
मिलके हमसब कर रहे, कुदरत से अन्याय।।

धरा प्रेयसी को सदा, हरियाली से प्यार।
प्रेमी बादल ही करे, धरती का श्रृंगार।

रिश्ते निभते अब कहाँ, बस निभने का खेल।
कितना मुश्किल है सुमन, मन से मन का मेल।।

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