राजन्! जनता अभी हताश।
टुकड़े - टुकड़े  बाँट दिया  है, आपस का विश्वास।।
राजन्! जनता -----
पहले  भी  देखी  हम  सबने, राजा  की मनमानी।
अहंकार  में  भूल  गए  जो,  सत्ता  आनी - जानी।
तुझको ताज दिया लोगों ने, आस लगाकर खास।।
राजन्! जनता -----
बाहर  मीठे  बोल  तुम्हारे, अंदर  क्या बतलाओ?
पहले के राजा और तुझमें, अन्तर क्या बतलाओ?
आमजनों के घर में  फाका, शासक घर क्यूँ रास??
राजन्! जनता -----
तुम  क्यों  भूल  गए  हो  प्यारे, क्या हैं फर्ज तुम्हारे?
काम देख इतिहास में अपना, क्या क्या दर्ज तुम्हारे?
तेरी  विदाई  से  मुमकिन  है, बुझे सुमन की प्यास।।
राजन्! जनता -----
 
 
 

No comments:
Post a Comment