Friday, January 13, 2023

फिर पतंग बन के उड़ जा

पहले  जीवन  से  तू जुड़ जा
फिर पतंग बन के  तू उड़ जा 
ऊँचा उड़ कर  देख  धरा  को
लेकिन फिर नीचे को मुड़ जा 

     ऊँची  सोच,  उठाता   जीवन
     सपने  भी  दिखलाता  जीवन
     मन  पतंग  बन  बहके   जैसे 
     अंकुश  उसे   लगाता  जीवन

श्रम  करके  हक  पाना होगा 
बिछुड़े  को   अपनाना  होगा
मन  पतंग  की  डोर  न  छूटे
इस  पर  ध्यान  लगाना होगा

     मन, पतंग  तो   लगे  एक  है
     उड़ने   के   जज्बे  अनेक  हैं
     बहके  नहीं  कदम  उड़ने  में
     करे  नियंत्रित  जो  विवेक  है

नहीं  डोर  तू  काट  कभी भी
नहीं  घृणा  तू  बाँट  कभी भी
सुमन  अगर  जीवंत, घटे क्यूं
फिर खुशबू की ठाट कभी भी

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