हुई घोषणा ये सरकारी
एक अकेला सब पे भारी
जो सवाल शासन से पूछे
कहते झट करता गद्दारी
लोकतंत्र के सभी तंत्र की
शासक ने छीनी मुख्तारी
धन - कुबेर सत्ताधीशों की
अपनी - अपनी हिस्सेदारी
कुचल रहे जो संविधान को
उसकी कैसी जय जयकारी
आम लोग ही चुनते शासक
मत भूलो ऐ! सत्ताधारी
लोक-जागरण करते रहना
सुमन कलम की जिम्मेवारी
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