गई किसानी तेल बेचने, मजदूरी के लाले।
मेहनत करनेवालों के ही, छिनते गए निवाले।
बोलो! किसको कौन संभाले??
गिने - चुने लोगों की सजतीं, हर महफिल अंगूरी।
शासक सँग लगुए - भगुए की, रातें भी सिन्दूरी।
कहीं दिवाली पर बहुजन के, निकले हुए दिवाले।
बोलो! किसको कौन संभाले??
नाम धरम का पर नफरत की, कैसी आँधी आई।
अगली पीढ़ी दिखती आतुर, बनने को दंगाई।
विद्यालय जर्जर हालत में, चमचम करे शिवाले।
बोलो! किसको कौन संभाले??
आपस की दूरी कम करना, हर मजहब हैं प्यारे।
मानव ही दुख में मानव के, बनते सुमन सहारे।
आग सियासी पर ये सोचो, कैसे देश बचा ले?
बोलो! किसको कौन संभाले??
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