सब अचरज से देख रहा है
फेंकू केवल फेंक रहा है
मोहक झूठ गढ़ा जीवनभर
कभी नहीं वो नेक रहा है
समाचार गोदी - चैनल के
झूठों से लबरेज रहा है
किया मित्र ने यूँ नंगा कि
बार - बार वो झेंप रहा है
सच से नाता कभी न इनका
झूठ, झूठ पर लेप रहा है
बाँटे आग सदा नफरत की
रोटी अपनी सेंक रहा है
पूछे प्रश्न सुमन इक तुझसे
क्यूँ सच से परहेज रहा है
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