आपस में तकरार बढ़ी यूँ, शुरू चुनावी सफर हुआ
जीते जो भी गए दूर वो, जनता से बेखबर हुआ
वादे तो भरमार सियासी, पर कितने पूरे होते
आज हाशिए पर सच्चे हैं, झूठों का ही कदर हुआ
रोज बढ़ी भाषा में तल्खी, जो गाली सी लगती है
भाई - भाई में हम लड़ते, प्रेम आपसी जहर हुआ
कानूनों की परिभाषाएं, सब गढ़ते अपने ढंग से
कई बार ऐसा लगता है, संविधान बेअसर हुआ
सच्ची खबरें हर शासक को, सुमन आईना दिखलाती
अब तो खबरें भी सरकारी, नहीं कहीं पे असर हुआ
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