अगर शासन की भाषा में, किसी से भी हिकारत हो
बताओ तुम वहाँ कैसे, अमन की फिर हिफाजत हो
किया जो काम शासक ने, वो चर्चा भी हो आपस में
नहीं बातें हों जहरीली, सफाई की सियासत हो
खिलाफत दर्ज करना तो, जलाते रेल-बस तुम क्यों
वो दौलत भी तो है अपनी, वतन पे भी इनायत हो
हुए आजाद कैसे हम, जरा कर याद कुर्बानी
वतन खातिर रहें चौकस, सभी को ये हिदायत हो
हमेशा बात करके ही, सुलझते हैं सभी मसले
मगर गणतंत्र हर हालत में , अपना भी सलामत हो
जहाँ मिलजुल सभी रहते, तभी वो देश बढ़ता है
नहीं मजहब, नहीं भाषा, न कोई भी अदावत हो
अगर सत्ता कहीं बहरी, उठाओ बात अपनी तुम
अमन से ही चमन बनता, सुमन से क्यों शिकायत हो
6 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 16 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन सृजन आदरणीय
सादर
बहुत खूब....,सादर नमस्कार
बेहद लाजवाब....
वाह!!!
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