Sunday, June 9, 2019

सालों भर रमजान लगे है

अपनेपन का भान लगे हैं
दिखने में इन्सान लगे है

भीड़ भरी इस दुनिया में भी
कुछ परिचित मुस्कान लगे है

देखा है कितनों को ऐसे
घर में भी अनजान लगे है

नहीं खून का रिश्ता फिर भी
कुछ अपनी सन्तान लगे है

घर में भी बतियाना ढंग से
दीवारों के कान लगे है

नहीं हमेशा मुस्काते तो
ये कुछ को अभिमान लगे है

जिन्दा लोग जलाते जब जब
गाँव शहर शमशान लगे है

एक वक्त ही रोटी मिलना
सालों भर रमजान लगे है

इन बातों से दूर सुमन जो
इस कारण नादान लगे है

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