अपनेपन का भान लगे हैं
दिखने में इन्सान लगे है
भीड़ भरी इस दुनिया में भी
कुछ परिचित मुस्कान लगे है
देखा है कितनों को ऐसे
घर में भी अनजान लगे है
नहीं खून का रिश्ता फिर भी
कुछ अपनी सन्तान लगे है
घर में भी बतियाना ढंग से
दीवारों के कान लगे है
नहीं हमेशा मुस्काते तो
ये कुछ को अभिमान लगे है
जिन्दा लोग जलाते जब जब
गाँव शहर शमशान लगे है
एक वक्त ही रोटी मिलना
सालों भर रमजान लगे है
इन बातों से दूर सुमन जो
इस कारण नादान लगे है
दिखने में इन्सान लगे है
भीड़ भरी इस दुनिया में भी
कुछ परिचित मुस्कान लगे है
देखा है कितनों को ऐसे
घर में भी अनजान लगे है
नहीं खून का रिश्ता फिर भी
कुछ अपनी सन्तान लगे है
घर में भी बतियाना ढंग से
दीवारों के कान लगे है
नहीं हमेशा मुस्काते तो
ये कुछ को अभिमान लगे है
जिन्दा लोग जलाते जब जब
गाँव शहर शमशान लगे है
एक वक्त ही रोटी मिलना
सालों भर रमजान लगे है
इन बातों से दूर सुमन जो
इस कारण नादान लगे है
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