कुछ करना है देश की खातिर,
जीना मरना देश की खातिर,
दो माटी का ढेला हमको या फिर तुम कस्तूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से हर हाथों को मजूरी दे दो।।
मानव श्रम और संसाधन सँग उर्जा है भरमार यहाँ।
कहीं नशेड़ी, आतंकी सँग जुड़ते जो बेकार यहाँ।
रोटी, पानी सभी का हक है, कम से कम वो पूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
शिक्षक खाना खिला रहे हैं सरकारी स्कूलों में।
नौनिहाल शिक्षा से वंचित इन सरकारी भूलों में।
नहीं बहुत तो जीने खातिर शिक्षा एक अंजूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
नौजवान का देश है भारत तुम कहते हो मंचों से।
लेकिन वे जीते हैं कैसे पूछ सुमन सरपंचों से।
सबके जीवन के पहिये को चलने खातिर धूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
जीना मरना देश की खातिर,
दो माटी का ढेला हमको या फिर तुम कस्तूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से हर हाथों को मजूरी दे दो।।
मानव श्रम और संसाधन सँग उर्जा है भरमार यहाँ।
कहीं नशेड़ी, आतंकी सँग जुड़ते जो बेकार यहाँ।
रोटी, पानी सभी का हक है, कम से कम वो पूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
शिक्षक खाना खिला रहे हैं सरकारी स्कूलों में।
नौनिहाल शिक्षा से वंचित इन सरकारी भूलों में।
नहीं बहुत तो जीने खातिर शिक्षा एक अंजूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
नौजवान का देश है भारत तुम कहते हो मंचों से।
लेकिन वे जीते हैं कैसे पूछ सुमन सरपंचों से।
सबके जीवन के पहिये को चलने खातिर धूरी दे दो।
एक गुजारिश है दिल्ली से -----
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