लोकतंत्र में भीड़ का, शुरू नया अध्याय।
गठित करे आरोप भी, भीड़ करे अब न्याय।।
लोकतंत्र में भीड़ ही, सदा रहा अनमोल।
जाती उसके साथ जो, पीटे ज्यादा ढोल।।
शासक ने भी भीड़ का, किया खूब उपयोग।
अपने सुख में,भीड़ को, दिया गरीबी रोग।।
किसे दोष दें भीड़ में, उठते हैं ये प्रश्न।
भीड़ करे हत्या कई, और मनाए जश्न।।
चुन चुनके तिनका सुमन, बना लिया इक नीड़।
जिसे उजाड़े आजकल, खुलेआम अब भीड़।।
गठित करे आरोप भी, भीड़ करे अब न्याय।।
लोकतंत्र में भीड़ ही, सदा रहा अनमोल।
जाती उसके साथ जो, पीटे ज्यादा ढोल।।
शासक ने भी भीड़ का, किया खूब उपयोग।
अपने सुख में,भीड़ को, दिया गरीबी रोग।।
किसे दोष दें भीड़ में, उठते हैं ये प्रश्न।
भीड़ करे हत्या कई, और मनाए जश्न।।
चुन चुनके तिनका सुमन, बना लिया इक नीड़।
जिसे उजाड़े आजकल, खुलेआम अब भीड़।।
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