खुद की नहीं दुहाई करना
मन की रोज सफाई करना
फटे हुए कपड़ों को सी कर
तकिया और रजाई करना
सोच रुग्ण हो या शरीर तो
क्या है उचित दवाई करना
ं
तुझे शून्य जो माने उसके
दायीं बैठ दहाई करना
लगे दरकने रिश्ते जब जब
कोशिश रहे सिलाई करना
प्रेम परस्पर ही जीवन है
काहे रोज लड़ाई करना
लड़े झूठ से उसी सत्य को
दे कर सुमन विदाई करना
1 comment:
बहुत सुंदर प्रस्तुति। आपका प्रोफ़ाइल देखकर खुशी हुई कि आप इतना अच्छा लिखते हैं और झारखंड से हैं। मैं भी वहीं से हूँ। एक बार मेरे ब्लॉग पर जरूर पधारें।
iwillrocknow.com
Post a Comment