बदला सा मंजर लगता है
सच लिखने में डर लगता है
कर सवाल तो देशद्रोह का
दोष तुरत मुझ पर लगता है
तीखे आज सभी के तेवर
अमृत यार ज़हर लगता है
रोटी बिनु बहुमत जीते जब
जीवन तभी कहर लगता है
न्याय, भीड़ के हाथों में अब
खतरों भरा सफर लगता है
छली गयी जनता दशकों से
सब कुछ इधर उधर लगता है
लोक जागरण सुमन जरूरी
सूना गाँव शहर लगता है
सच लिखने में डर लगता है
कर सवाल तो देशद्रोह का
दोष तुरत मुझ पर लगता है
तीखे आज सभी के तेवर
अमृत यार ज़हर लगता है
रोटी बिनु बहुमत जीते जब
जीवन तभी कहर लगता है
न्याय, भीड़ के हाथों में अब
खतरों भरा सफर लगता है
छली गयी जनता दशकों से
सब कुछ इधर उधर लगता है
लोक जागरण सुमन जरूरी
सूना गाँव शहर लगता है
1 comment:
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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