कुछ कहते विपरीत समय को
सुमन मानता मीत समय को
जो इसको अनुकूल बना ले
लिया उसी ने जीत समय को
समय समय पर खोज किया कर
मुमकिन हो तो रोज किया कर
कब किसके वश में कल होता?
छोड़ो कल, इमरोज़ किया कर
समय कीमती, सब कहते हैं
कितने, समय-साथ बहते हैं
न पहचाना समय को जिसने
बोझ बने जीते रहते हैं
सीख, समय से बढ़ते जाना
और शिखर पर चढ़ते जाना
जब कुछ भी विपरीत लगे तो
उचित समय को पढ़ते जाना
सब दिन समय अनूठा होता
नहीं किसी से रूठा होता
चाल समय की जो ना समझे
समय उसी का झूठा होता
नोट - इमरोज़ = आज
सुमन मानता मीत समय को
जो इसको अनुकूल बना ले
लिया उसी ने जीत समय को
समय समय पर खोज किया कर
मुमकिन हो तो रोज किया कर
कब किसके वश में कल होता?
छोड़ो कल, इमरोज़ किया कर
समय कीमती, सब कहते हैं
कितने, समय-साथ बहते हैं
न पहचाना समय को जिसने
बोझ बने जीते रहते हैं
सीख, समय से बढ़ते जाना
और शिखर पर चढ़ते जाना
जब कुछ भी विपरीत लगे तो
उचित समय को पढ़ते जाना
सब दिन समय अनूठा होता
नहीं किसी से रूठा होता
चाल समय की जो ना समझे
समय उसी का झूठा होता
नोट - इमरोज़ = आज
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