लगता है फिर आ गया पत्थर-युग।
चारों तरफ पत्थर ही पत्थर।
सब फेंक रहे हैं एक दूसरे पर।
कोई कीचड़ में तो कोई किसी के ऊपर।
लेकिन हम नींव के पत्थर हैं,
हमें हिलाओगे, तो खुद हिल जाओगे,
यही सदियों की असलियत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, इक हकीकत है।।
कोई तराशकर इसे मूर्ति बनाता है,
तो कोई विरोधियों पर स्फूर्ति से चलाता है।
हम भूले नहीं हैं कश्मीरी पत्थरबाज को,
और नहीं भूले हैं, पत्थर पर बैठे
बुद्ध, महावीर की आवाज को,
जो हमारे समाज की आज भी वसीयत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।।
कोई जीता है पत्थर तोड़ के
कोई खुश है पत्थर से किसी का सर फोड़ के
कोई पत्थर सा कानून बनाता है
तो कोई उसे पथरीले तर्कों में छुपाता है
जनता की भलाई के लिए सरकार की
दिखती कहाँ, कोई नीयत है?
पत्धर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।।
मीडिया की भाषा भी पथरीली है।
सियासत की भाषा जहरीली है।
सारा खेल यारों सत्ता की गद्दी का है।
ना ही अन्दर का ना ही देश की चौहद्दी का है।
आजादी से अबतक यही लगता है कि
पत्थर सी हो गयी अपनी सियासत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।
चारों तरफ पत्थर ही पत्थर।
सब फेंक रहे हैं एक दूसरे पर।
कोई कीचड़ में तो कोई किसी के ऊपर।
लेकिन हम नींव के पत्थर हैं,
हमें हिलाओगे, तो खुद हिल जाओगे,
यही सदियों की असलियत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, इक हकीकत है।।
कोई तराशकर इसे मूर्ति बनाता है,
तो कोई विरोधियों पर स्फूर्ति से चलाता है।
हम भूले नहीं हैं कश्मीरी पत्थरबाज को,
और नहीं भूले हैं, पत्थर पर बैठे
बुद्ध, महावीर की आवाज को,
जो हमारे समाज की आज भी वसीयत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।।
कोई जीता है पत्थर तोड़ के
कोई खुश है पत्थर से किसी का सर फोड़ के
कोई पत्थर सा कानून बनाता है
तो कोई उसे पथरीले तर्कों में छुपाता है
जनता की भलाई के लिए सरकार की
दिखती कहाँ, कोई नीयत है?
पत्धर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।।
मीडिया की भाषा भी पथरीली है।
सियासत की भाषा जहरीली है।
सारा खेल यारों सत्ता की गद्दी का है।
ना ही अन्दर का ना ही देश की चौहद्दी का है।
आजादी से अबतक यही लगता है कि
पत्थर सी हो गयी अपनी सियासत है।
पत्थर सिर्फ प्रतीक नहीं, हकीकत है।
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