Thursday, October 10, 2019

राम ही छाँव - राम ही धूप

पता नहीं क्यों? हमारे मन में,
कुछ जीवंत प्रश्न और तर्क है।
कि हमारे और तुम्हारे राम में,
क्यों इतना फर्क है?

हमारे राम का नहीं कोई रूप है,
वही छाँव है तो वही धूप है।
हमारा राम तो लोगों के दिलों में,
दैनिक आचरण और व्यवहार में है।
पर तुम्हारा राम क्यों,
सिर्फ अयोध्या के दरबार में है?

हमारा राम सार्वकालिक,
सर्वव्यापी और जीवंत है।
अपनी मर्यादा में रहते हुए,
अपरिमित और स्वच्छंद है।
पर तुम्हारा राम!
सिर्फ मूर्तियों तक सीमित
और मंदिरों में बन्द है।

हमारा राम पहाड़ों में, जंगल में, झरनों में
नदियों की निर्मल धारा में सदा आबाद है।
वही महताब और वही आफताब है।
पर तुम क्यों साबित करने पर तुले हो कि
तुम्हारे राम की सीमा मानो एक तालाब है।

हमारा राम सदियों से, हर रोज,
रावण से युद्ध करता है।
लेकिन तुम्हारा राम साल में एक बार,
हाँ!  बस एक बार ही,
रावण के पुतले जलाकर,
मानो अपने आपको शुद्ध करता है।
और मनाता है जोरों से जश्न।
इसलिए खड़े होते हैं हमारे ऐसे प्रश्न।

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