चल पड़े जिस राह पे हम और जाना दूर है
मंजिलों का शेष रहना जिन्दगी का नूर है
जिन्दगी से आस तब तक प्यास दिल में खास हो
या नहीं तो आस बिखरे सदियों से दस्तूर है
आदमी को आदमी समझो तभी तू आदमी
आदमियत को बचाने की सजा मंजूर है
मंजिलें सबकी अलग है, कोशिशें जारी रहे
एक मंजिल बाद फिर से मंजिलें भरपूर है
प्यार हो व्यवहार में तो मंजिलें आसान है
वरना कह दे तू सुमन से खट्टा ये अंगूर है
मंजिलों का शेष रहना जिन्दगी का नूर है
जिन्दगी से आस तब तक प्यास दिल में खास हो
या नहीं तो आस बिखरे सदियों से दस्तूर है
आदमी को आदमी समझो तभी तू आदमी
आदमियत को बचाने की सजा मंजूर है
मंजिलें सबकी अलग है, कोशिशें जारी रहे
एक मंजिल बाद फिर से मंजिलें भरपूर है
प्यार हो व्यवहार में तो मंजिलें आसान है
वरना कह दे तू सुमन से खट्टा ये अंगूर है
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