Wednesday, November 6, 2019

कथा, कहानी भी गढ़ते हैं

शासन करते नाटक जैसा
पर नाटक में शासक जैसा

दौड़ा - दौड़ी ऐसा करते
तब लगते हैं धावक जैसा

चकाचौंध को छोड़ गुफा में
गए अचानक साधक जैसा

जब जब जाते हैं विदेश में
बात करे वो याचक जैसा

घर में खुद को साबित करते
वही सिंह के शावक जैसा

भौतिकता का शौक बहुत पर
खुद को कहे उपासक जैसा

कथा, कहानी भी गढ़ते हैं
सुमन आजकल वाचक जैसा

1 comment:

Rohitas Ghorela said...

सटीक सटीक सटीक।

घर की कुछ खैर ख़बर नहीं है
पुकार वो सुने ना बेहरा जैसा
पड़ोसी अम्मा बीमार पड़ी है
जाने है हाल जा जा लला जैसा।
बेहद कमाल का तंज।

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