जो इज्ज़त को लूट रहे हैं
वो अपराधी छूट रहे हैं
सभी विरोधी को मनमाफिक
झुन्ड बनाकर कूट रहे हैं
मंहगाई की मार है ऐसी
लोग-बाग अब टूट रहे हैं
आज वही दुश्मन बन बैठा
रिश्ते जहां अटूट रहे हैं
जोड़ सुमन जो अनजाने में
जन-धारा से फूट रहे हैं
वो अपराधी छूट रहे हैं
सभी विरोधी को मनमाफिक
झुन्ड बनाकर कूट रहे हैं
मंहगाई की मार है ऐसी
लोग-बाग अब टूट रहे हैं
आज वही दुश्मन बन बैठा
रिश्ते जहां अटूट रहे हैं
जोड़ सुमन जो अनजाने में
जन-धारा से फूट रहे हैं
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