कोशिशें पुरजोर करते, खुद के वो विस्तार का
हाल बदतर हो गया है, इस चमन गुलजार का
बागबाँ उसको चुना है, जो हुनर जाने नहीं
कर रहे अब वो खुदाई, पेड़ के आधार का
बाग में पहले के जैसा, हो अमन, रौनक दिखे
अब यहाँ क्यूँ जंग जारी, जीने के अधिकार का
खाद, पानी, रौशनी तक, छिन गये हैं बाग के
मस्त माली रात - दिन, करता सफर संसार का
पेड़, पौधे या लताओं, से बचे गुलशन सुमन
फिर नहीं इस बागबाँ को, भार दें पद-भार का
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