खोज रहा हूँ नित अपनापन, आते जाते लोगों में
मिला भाव का बस सूनापन, आते जाते लोगों में
सूरज, चाँद, सितारे, अम्बर, नहीं किसी से भेद करे
स्वारथ भरा यहाँ बौनापन, आते जाते लोगों में
सोच समझकर कदम उठाना, ये इन्सानी फितरत है
अभी सोच में क्यों अंधापन, आते जाते लोगों में
याद करें श्रद्धा से उनको, जो समाज-हित में जीते
अभी दिखावे का टुच्चापन, आते जाते लोगों में
पहले जगता सुमन होश में, लोक जागरण फिर करता
खोया लगभग यह सच्चापन, आते जाते लोगों में
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