जो शासक को सीधा दिखता
क्यों जनता को उल्टा दिखता
समझ न पाया इस अन्तर को
बौना भी क्यों लम्बा दिखता
लोग भले अनगिन भूखे पर
दिल्ली को सब चंगा दिखता
न्याय विवश हो जिस शासन में
तब विनाश का जलवा दिखता
जब सत्ता की दखल खबर में
समाचार फिर नंगा दिखता
जो सवाल पूछे हैं उन पे
तरह तरह का हमला दिखता
नित दर्पण ले सुमन घूमता
जिसमें सब कुछ सच्चा दिखता
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