हुआ आज दो साल जो, पाया था अवकाश।
कर्मशील हूँ अब तलक, मुट्ठी में आकाश।।
सुखमय जीवन के लिए, हरदम कर्म प्रधान।
इस कारण बढ़ता सदा, लोगों का सम्मान।।
भले समस्या जो रहे, समाधान की बात।
हो विचार सम्यक मगर, अन्दर में जज़्बात।।
आस पास में बाँटना, निज अनुभव उद्गार।
ध्यान रखें क्या लोग हैं, सुनने को तैयार??
ज्ञान, प्रेम बढ़ता रहे, जितना बाँटो मीत।
सुमन हृदय में आज भी, है पुस्तक से प्रीत।।
No comments:
Post a Comment