रावण गया,कौरव और कंस गये,
हिटलर गया,न जाने कितने राजवंश गये,
फिर भी अहंकार का खेल बदस्तूर जारी है,
जिसकी चपेट में परेशान दुनिया सारी है।
राजाओं ने हमेशा प्रजा को कठपुतली बनाया।
अपने ही इशारों पर, जब तब खूब नचाया।
लेकिन अभी तो लोकतंत्र है साहिब!
जहाँ प्रजा नहीं, नागरिकों डेरा है,
और नागरिकों ने हमेशा अपने शासकों को,
उनकी गलत मंशा को, चुभते सवालों से घेरा है।
इतिहास बहुत न्यायप्रिय और निर्मम होता है।
जिसका ज्ञान, किसी को अधिक,
तो किसी को कम होता है।
लेकिन हर हाल में इतिहास इक सीख है।
न तो वह पुरस्कार है, न ही भीख है।
लेकिन अभी! हाँ! हाँ! आजकल!
नागरिक से प्रजा में रूपांतरित लोगों की,
चारों तरफ इतिहास बदलने की चीख है।
नाम बदलने से इतिहास नहीं बदलता!
क्योंकि इतिहास बदला नहीं बनाया जाता है
और ऐतिहासिक बनने के लिए,
इतिहास समझना भी पड़ता है।
इतनी सी बात सुमन तेरे समझ में नहीं आई?
आखिर इतिहास किसको, कब माफ किया है सांई?
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