ये जयकारे, दो कौड़ी के
शोर तुम्हारे, दो कौड़ी के
स्वप्न सुनहरे दिखलाया पर
खुले पिटारे, दो कौड़ी के
मजहब की रंगीन चादरें
जहाँ उघारे, दो कौड़ी के
भ्रम टूटा तो लोग-बाग सब
तुझे पुकारे, दो कौड़ी के
दर्ज नहीं इतिहास करे जो
बने सितारे, दो कौड़ी के
नेक काम का वक्त मिला पर
हुए नकारे, दो कौड़ी के
खुद को सुमन सुधारो सांई
या रह प्यारे, दो कौड़ी के
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