खुश कितनी सरकार देखिए,
मँहगाई की मार देखिए।
अच्छे दिन की बातें कहते,
सबके दिल में आस चाहिए।
कितना और विकास चाहिए?
झूठ, मीडिया, अब पर्याय,
इसका भी कुछ करो उपाय।
इसे देखना बंद करो मिल,
ऐसा नेक प्रयास चाहिए।
कितना और विकास चाहिए?
हिन्दू, मुस्लिम का बँटवारा,
केवल इनको यही सहारा।
धर्म सभी अच्छे होते हैं,
जन में यह विश्वास चाहिए।
कितना और विकास चाहिए?
खेल, तेल का अभी शुरू है,
बहकाने में महागुरू है।
चाल सियासी समझें हम सब,
जन जन में यह प्यास चाहिए।
कितना और विकास चाहिए?
भूल गए हैं क्यों मर्यादा,
वो मंत्री हम सुमन हैं प्यादा।
जनता गद्दी देती उनको,
इस डर का एहसास चाहिए।
कितना और विकास चाहिए?

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