Saturday, October 29, 2022

खुद का घर मंदिर बने

अलग अलग इन्सान सा, भगवानों के रूप।
सरदी, गरमी साथ में, बारिश, छाया, धूप।।

इक दूजे से हम कहें, कण कण में भगवान।
जो कहते, क्या अब तलक, बन पाया इन्सान??

चलता जीवन प्रेम से, प्रेम जगत में खास।
भाव शून्यता में सदा, भगवन दिखे उदास।।

माँगे सब भगवान से, हो करके मजबूर।
हम सबमें भगवान जब, खोज रहे क्यों दूर??

विवश लोग अक्सर करे, भगवानों को याद।
तू खुद ही भगवान है, खुद से कर सम्वाद।।

कदम कदम पर हैं सजे, भगवन के घर द्वार।
खुद का घर मंदिर बने, हो परिजन में प्यार।।

आदम ही भगवान है, भला बता क्या फर्क?
नहीं सुमन अन्तर दिखे, लाख गढ़ो तुम तर्क।।

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