बन खटमल नेता सुमन, छुप के पीते खून।
अकड़ी यूँ जनता अभी, ज्यों पानी बिन चून।।
कठिन परिश्रम से मिले, अधिकारी पद-नाम।
अनपढ़ मंत्री के लिए, अफसर बने गुलाम।।
आजादी के बाद से, रोटी सदा सवाल।
नहीं मयस्सर लोग को, गुजरा अमृत-काल।।
अभी सियासत धर्म की, सब इसमें तल्लीन।
शासक-गण इस चाल से, हक भी लेते छीन।।
गिनती निर्धन की बढ़ी, मंत्री-गण आबाद।
लोग सियासी कब करे, वादे अपने याद??
सीमा पर लड़ती रही, जो भारत की फौज।
क्या उनको भी हक मिला, सरकारों की मौज??
अजगर को भी एक दिन, करना पड़े प्रयास।
जगो, जगाओ लोग में, रोज रोज विश्वास।।
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