इसमें क्या शक है श्रीमान?
पहले रोटी, फिर भगवान!
पीड़ा आमजनों की जो भी, उसको बारम्बार लिखूँ।
आँसू के सागर में जी कर, कैसे मैं श्रृंगार लिखूँ??
कहते विश्व - गुरु भारत को, मगर करोड़ों भूखे हैं।
रोते - रोते अब बहुजन के, आँसू तक भी सूखे हैं।
अगली पीढ़ी के भविष्य का, हो कैसे विस्तार लिखूँ?
आँसू के सागर में -----
बात धर्म की जो न माने, वही धर्म की बात करे।
लड़ते नाम धर्म का लेकर, नहीं मर्म की बात करे।
भाईचारा जब संकट में, हो कैसे निस्तार लिखूँ?
आँसू के सागर में -----
इक जैसे सुख - दुख में जीते, लोग वही अपने होते।
एक ढंग से जीवन - यापन, इक जैसे सपने होते।
सुमन घटा है प्यार आपसी, हो कैसे उद्धार लिखूँ?
आँसू के सागर में -----
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